Know your Rights
आरटीआई न देने पर हाई कोर्ट ने लगाया 60 हजार जुर्माना
शिमला — हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना उपलब्ध न करवाए जाने के
मामले में एसजेवीएनएल के तीन अधिकारियों पर 60 हजार हजार रुपए की कॉस्ट लगाई है।
न्यायाधीश
तरलोक सिंह चौहान ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि कॉस्ट की यह राशि अदा करने के लिए उक्त
अधिकारी निजी तौर पर जिम्मेदार होंगे। अदालत ने एसजेवीएनएल के हमीरपुर स्थित पीआईओ सुशील
महाजन, शिमला स्थित पीआईओ डी सर्वेश्वर और अपीलेट अथारिटी एके मुखर्जी को आरटीआई
अधिनियम के प्रावधानों को दरकिनार कर प्रार्थी द्वारा मांगी गई सूचना न दिए जाने का दोषी
ठहराते हुए प्रत्येक अधिकारी पर 20-20 हजार रुपए की कॉस्ट लगाई है। न्यायाधीश तरलोक सिंह
चौहान ने अपने निर्णय में आगे कहा कि सूचना आयोग ने भी अपीलेट अथारिटी द्वारा पारित किए गए
गलत निर्णय पर अपनी मुहर लगा दी। एसजेवीएनएल के अधिकारियों ने प्रार्थी को सूचना न दिए जाने
के लिए आरटीआई अधिनियम की धारा-आठ को गलत तरीके से लागू किया गया है। प्रार्थी द्वारा
मांगी गई सूचना इस धारा के अंतर्गत नहीं आती, जबकि उक्त अधिकारिओं ने इस धारा के प्रावधानों
के अनुसार प्रार्थी को सूचना देने से इनकार कर दिया। सूचना आयोग द्वारा अपीलेट अथारिटी के
निर्णय पर अपनी मुहर लगाने वाले फैसले को प्रार्थी श्रीवास्तव ने हाई कोर्ट के समक्ष चुनौती दी
थी। अदालत ने प्रार्थी की याचिका को स्वीकार करते हुए अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि सूचना
का अधिकार भारतीय सविंधान के अनुच्छेद-19 के तहत मौलिक अधिकार है और नागरिकों को कानून
की गलत व्याख्या कर इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। अदालत ने शिमला स्थित
पीआईओ डी सर्वेश्वर को आदेश दिए कि वह चार सप्ताह के भीतर प्रार्थी के आवेदन पर दोबारा से
निर्णय ले।
आरटीआई न देने पर हाई कोर्ट ने लगाया 60 हजार जुर्माना
शिमला — हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना उपलब्ध न करवाए जाने के
मामले में एसजेवीएनएल के तीन अधिकारियों पर 60 हजार हजार रुपए की कॉस्ट लगाई है।
न्यायाधीश
तरलोक सिंह चौहान ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि कॉस्ट की यह राशि अदा करने के लिए उक्त
अधिकारी निजी तौर पर जिम्मेदार होंगे। अदालत ने एसजेवीएनएल के हमीरपुर स्थित पीआईओ सुशील
महाजन, शिमला स्थित पीआईओ डी सर्वेश्वर और अपीलेट अथारिटी एके मुखर्जी को आरटीआई
अधिनियम के प्रावधानों को दरकिनार कर प्रार्थी द्वारा मांगी गई सूचना न दिए जाने का दोषी
ठहराते हुए प्रत्येक अधिकारी पर 20-20 हजार रुपए की कॉस्ट लगाई है। न्यायाधीश तरलोक सिंह
चौहान ने अपने निर्णय में आगे कहा कि सूचना आयोग ने भी अपीलेट अथारिटी द्वारा पारित किए गए
गलत निर्णय पर अपनी मुहर लगा दी। एसजेवीएनएल के अधिकारियों ने प्रार्थी को सूचना न दिए जाने
के लिए आरटीआई अधिनियम की धारा-आठ को गलत तरीके से लागू किया गया है। प्रार्थी द्वारा
मांगी गई सूचना इस धारा के अंतर्गत नहीं आती, जबकि उक्त अधिकारिओं ने इस धारा के प्रावधानों
के अनुसार प्रार्थी को सूचना देने से इनकार कर दिया। सूचना आयोग द्वारा अपीलेट अथारिटी के
निर्णय पर अपनी मुहर लगाने वाले फैसले को प्रार्थी श्रीवास्तव ने हाई कोर्ट के समक्ष चुनौती दी
थी। अदालत ने प्रार्थी की याचिका को स्वीकार करते हुए अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि सूचना
का अधिकार भारतीय सविंधान के अनुच्छेद-19 के तहत मौलिक अधिकार है और नागरिकों को कानून
की गलत व्याख्या कर इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। अदालत ने शिमला स्थित
पीआईओ डी सर्वेश्वर को आदेश दिए कि वह चार सप्ताह के भीतर प्रार्थी के आवेदन पर दोबारा से
निर्णय ले।
No comments:
Post a Comment
Do leave your comment.